मारवाड़ क्षेत्र का लोकप्रिय त्योहार घुड़ला मनाया जाता है?

Q. मारवाड़ क्षेत्र का लोकप्रिय त्योहार घुड़ला मनाया जाता है?

(1) श्रावण कृष्ण अष्टमी से श्रावण शुक्ल तृतीया तक

(2) भाद्रपद कृष्ण अष्टमी से भाद्रपद शुक्ल तृतीया तर्क

(3) कार्तिक कृष्ण अष्टमी से कार्तिक शुक्ल तृतीया तक

(4) चैत्र कृष्ण अष्टमी से चैत्र शुक्ल तृतीया तक

(5) अनुत्तरित प्रश्न

Answer: 4

मारवाड़ के जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर आदि जिलों में चैत्र कृष्ण सप्तमी अर्थात शीतला सप्तमी से लेकर चैत्र शुक्ला तृतीया तक घुड़ला त्यौहार मनाया जाता है। इस त्यौहार के प्रति बालिकाओं में ज्यादा उत्साह रहता है। घुड़ला एक छिद्र किया हुआ मिट्टी का घड़ा होता है जिसमें दीपक जला कर रखा होता है।

मारवाड़ के जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर आदि जिलों में यह त्यौहार मनाया जाता है। घुड़ला एक छिद्रित घड़ा होता है जिसमें दीपक जला कर रखा होता है। बालिकाएं समूह में कुम्हार के यहां जाकर घुड़ला और चिड़कली लाती हैं फिर इसमें कील से छोटे-छोटे छिद्र कर इसमें दीपक जला कर रखती है।

मारवाड़ के जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर आदि जिलों में चैत्र कृष्ण अष्टमी (शीतला अष्टमी) से चैत्र शुक्ला तृतीया तक यह त्यौहार मनाया जाता है।

घुड़ला घुमाने वाली महिलाओं को तीजणियां कहा जाता है।

घुड़ला त्यौहार क्यों मनाया जाता है?

ये घटना सन् 1490 के दशक की है जब जोधपुर में राव सातल सिंह का शासन था, उस समय मुगलों से युद्ध चलते रहते थे।

एक बार अजमेर के सूबेदार मल्लू खां ने अपने सहायकों सिरिया खां और घुड़ले खां के साथ मेड़ता पर आक्रमण किया। मार्ग में उसने पीपाड़ गाँव के पास कोसाणा गांव के तालाब पर सुहागिन स्त्रियों को गणगौर की पूजा करते हुए देखा। मल्लूखाँ ने उन सुहागिनों को पकड़ लिया तथा उन्हें लेकर अजमेर के लिए रवाना हो गया।

जब यह समाचार राव सातल के पास पहुँचा तो राव सातल ने अपनी सेना लेकर मल्लू खाँ का पीछा किया। मेड़ता से दूदा तथा लाडनूं से बीदा की सेनाएं भी मल्लूखां को रोकने के लिए चल पड़ीं। मल्लूखां पीपाड़ से कोसाणा तक ही पहुँचा था कि जोधपुर नरेश सातल ने उसे जा घेरा। मल्लूखां और उसके साथी भाग छूटे किंतु मल्लूखां का सेनापति घुड़ले खां इस युद्ध में मारा गया। हिन्दू कन्याएं एवं सुहागिन स्त्रियां मुक्त करवा ली गयीं।

सातल के सेनापति खीची सारंगजी ने घुड़ला खां का सिर काटकर राव सातल को प्रस्तुत किया। राव सातल ने घुड़लाखां का कटा हुआ सिर उन स्त्रियों को दे दिया जिन्हें मल्लू खां उठाकर ले जाना चाहता था। स्त्रियां उस कटे हुए सिर को लेकर गांव में घूमीं और उन्होंने राजा के प्रति आभार व्यक्त किया। महाराजा के आदेश से उस सिर को सारंगवास गांव में गाड़ा गया। जिसके कारण वह गांव आज भी घड़ाय कहलाता है।

इस घटना की स्मृति में आज भी चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को घुड़ला निकाला जाता है। इस अवसर पर गाँव-गाँव में मेला लगता है।

किस भू-आकृतिक प्रदेश में नरसिंहपुर पहाड़ और हिंगलाज-का-मगरा स्थित हैं?

हथमति, मेश्वा और माजम सहायक नदियाँ हैं?

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